Wednesday, October 8, 2008

फ़िर से शुरुवात करने की कोशिश.

ऐसा लगता था की मेरी ज़िन्दगी थोडी थोडी स्थिर होती जा रही थी जब तरह से मैं गाजियाबाद मैं था। नौकरी ठीक ठाक चल रही थी घर मैं ज़रूरत का सामान भी धीरे धीरे जोड़ चुका था ।मेरा भाई सुमित तो मेरे साथ रहता ही था और माता पिता जी भी समय समय पर हमारे साथ रहने आते रहते थे। यका यक मैंने अपनी नौकरी बदलने की सोची बहुत बड़े संगठन से था तो तो गहरी सूच मैं डूब गया था मैं की मुझे क्या करना चाहीए, बहुत लोगो से सलाह मशवरा भी किया और अंततः मैंने यह फैसला किया की मैं नौकरी बदल ही लेता हूँ। परन्तु समस्या यह थी की नए संघठन के साथ सम्मिलित होने के लिए मुझे बंगलोर जाना पड़ता । मैंने एक सक्थ फैसला किया और बंगलोर आ गया, मुझे यहाँ एक महीना हो गया है जब मैं यह ब्लॉग लिख रहा हूँ। मुझे ऐसा लगता है की बहुत कुछ बदल गया है स्थिर से अस्थिर हो गया है कुछ तो, घर वालों से दूर रहना क्या होता है मुझे काफी समय से पता है परन्तु इतना दूर रहना की जा के मिल भी न सकूं दीपावली पे यह एक बहुत अलग अनुभव है, मैंने धर्य नही छोडा है अभी तक तो और मैं उस समय का इंतज़ार कर रहा हूँ जब हम सब एक बार फ़िर से साथ रह रहे होंगे।